ख़्वाब की तरह

ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई के मर जाने को जी चाहता है

घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है

डूब जाऊँ तो कोई मौज निशाँ तक न बताए
ऐसी नद्दी में उतर जाने को जी चाहता है

कभी मिल जाए तो रस्ते की थकन जाग पड़े
ऐसी मंज़िल से गुज़र जाने को जी चाहता है

वही पैमाँ जो कभी जी को ख़ुश आया था बहुत
उसी पैमाँ से मुकर जाने को जी चाहता है”

खुद को इतना

खुद को इतना भी मत बचाया कर
बारिशे हो तो भीग जाया कर

चाँद लाकर कोई नहीं देगा
अपने चेहरे से जगमगाया कर

दर्द हीरा है दर्द मोती है
दर्द आँखों से मत बहाया कर

काम ले कुछ हसीन होंठो से
बातो-बातो मे मुस्कुराया कर

धुप मायूस लौट जाती है
छत पे कपडे सुखाने आया कर

कौन कहता है दिल मिलाने को
कम से कम हाथ तो मिलाया कर

उम्र भर ..बस

उम्र भर ..बस उम्र का .. पीछा किया…
काम हमने कौन सा .. सीधा किया ;
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पांव जब .. जमने लगे .. मेरे कहीं
दिल निकल भागा .. ज़हन रोका किया ;
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रोशनी .. अपनी लुटा दी .. हर जगह..
पूछते हो तुम .. कि हमने क्या किया ;
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राह चलते ..जब कहीं .. मौक़ा मिला..
दिल वही ठहरा.. रुका ..जितना किया ;
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जो मिला.. जितना मिला .. हर हाल में…
रोज़ .. उसके दर पे ही …सज़दा किया ;
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हाँ .. नहीं रक्खा अना को .. ताक़ पर..
प्रेम से पर .. सब यहाँ .. जीता किया ;
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ज़ुर्म है गर ये .. तो दो मुझको सज़ा …
मौत से कब .. दिल मिरा दहला किया ;
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प्यास को पी कर … दबा कर भूख को…
रात दिन बस प्यार ही .. ओढ़ा किया ;
एक नदिया सी ‘तरू’ … बहती रही…
कब किसी .. दीवार ने .. रोका किया…!!

है अनोखा यार

है अनोखा यार मेरा ,
न कोई उसके जबाब का
शबनम भी मांगती है, उससे वो चेहरा गुलाब का

क्या गर्दन सुराहीदार है
भरी है मस्ती शराब की
काजल ने चढ़ा रखी है
उसके कमाने शबाब की
तरिका नहीं है बाकी , अब कोई बचाव का

अंगडाई ले के जुल्फें
हैं गीली बिखेर दी
सब राह घेर दी हैं
उसने निकलने की
दिल धक् से रह गया , है आलम तनाव का

वो होंठ गुलाबों से
लगता है बोल उठेंगे
मेरा ही नाम लेंगे
अपना मुझे कहेंगे
धीरे से अब सरका है, लो साया हिजाब का

बन के गुल बहार का
इस चमन में आ गए हैं
जज्बात उम्र “मसीहा”
कुछ और पा गए हैं
लगते हैं भरा जाम, वो नशीली शराब का

लकीर नहीं हूँ मैं

इंसान हूँ, तहरीर नहीं हूँ मैं ।
पत्थर पे लिखी लकीर नहीं हूँ मैं ।।
मेरे भीतर इक रूह भी बसती है लोगों
सिर्फ़ एक अदद शरीर नहीं हूँ मैं ।।