वो रुठ कर बोली

वो रुठ कर बोली क्यूं इतना दर्द लिखते हो,
मैंने मुस्कुरा के कहा.. शायरी कोई कानूनन जुर्म तो नहीं..!!

मेरा हर लफ़्ज

मेरा हर लफ़्ज हर बात अधूरी है
तुम्हारे बिन दिन और रात अधूरी है
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मैं क्या ग़ज़ल पेश करूँ, यूँ तो
तुम्हारे बिन ग़ज़ल की शुरुआत अधूरी है
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ऐसे बस जाए कभी सोचा ही नहीं
तुम्हारे बिन मेरे लिए कायनात अधूरी है
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कैसे मुकम्मल हो मेरी रूह-ए-ग़ज़ल
तुम्हारे बिन ग़ज़ल की पूरी ज़ात अधूरी है

कोई झंकार है

कोई झंकार है, नग़मा है, सदा है क्या है ?
तू किरन है, के कली है, के सबा है, क्या है ?

तेरी आँख़ों में कई रंग झलकते देख़े
सादगी है, के झिझक है, के हया है, क्या है ?

रुह की प्यास बुझा दी है तेरी क़ुरबत ने
तू कोई झील है, झरना है, घटा है, क्या है ?

नाम होटों पे तेरा आए तो राहत-सी मिले
तू तसल्ली है, दिलासा है, दुआ है, क्या है ?

होश में लाके मेरे होश उड़ाने वाले
ये तेरा नाज़ है, शोख़ी है, अदा है, क्या है ?

दिल ख़तावार, नज़र पारसा, तस्वीरे अना
वो बशर है, के फ़रिश्ता है, के ख़ुदा है, क्या है ?

बन गई नक़्श जो सुर्ख़ी तेरे अफ़साने की
वो शफ़क है, के धनक है, के हिना है, क्या है ?