प्यार की फितरत भी अजीब है यारा..
बस जो रुलाता है उसी के गले लग कर रोने को दिल चाहता है
Category: वक्त-शायरी
आपके ही नाम से
आपके ही नाम से जाना जाता हूँ “पापा”.
भला इस से बड़ी शोहरत मेरे लिए क्या होगी…
सहम उठते हैं
सहम उठते हैं कच्चे मकान पानी के खौफ़ से, महलों की आरजू ये है कि बरसात तेज हो।
मोहब्बत का कफ़न दे
मोहब्बत का कफ़न दे दो तो शायद फिर जनम ले ले !!
अभी इंसानियत की लाश चौराहे पे रक्खी है !!
फिर यूँ हुआ कि
फिर यूँ हुआ कि सब्र की उँगली पकड़ कर हम..
इतना चले कि रास्ते हैरान हो गए..
सब्र तहज़ीब है
सब्र तहज़ीब है मुहब्बत की
और तुम समझते रहे बेज़ुबान हैं हम
मैंने कब तुम से
मैंने कब तुम से मुलाकात का वादा चाहा,
मैंने दूर रहकर भी तुम्हें हद से ज्यादा चाहा..
उसे भी दर्द है
उसे भी दर्द है शायद बिछड़ने का,
गिलाफ वो भी बदलती है रोज तकिए का…!
ना जाया कर मुझको
ना जाया कर मुझको
यूँ अकेला छोड़ कर…
सुबह शाम ही नहीं,
मुझे सारा दिन
तेरी जरूरत है……!!!
शाम का वक्त
शाम का वक्त हो और ‘शराब’ ना हो…!इंसान का वक्त इतना भी ‘खराब’ ना हो..