हिचकियों में वफ़ा को ढूँढ रहा था मैं..!
कमबख्त गुम हो गई…दो घूँट पानी से .. !!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हिचकियों में वफ़ा को ढूँढ रहा था मैं..!
कमबख्त गुम हो गई…दो घूँट पानी से .. !!
फासलों से अगर.. मुस्कुराहट लौट आये तुम्हारी…
तो तुम्हे हक़ है.. कि तुम… दूरियां बना लो मुझसे….
आंखें भी खोलनी पड़ती हैं उजाले के लिए…
सूरज के निकलने से ही अँधेरा नहीं जाता….
मेरी नाराज़गी तुमसे नहीं, तुम्हारे वक्त से है,
जो तुम्हारे पास मेरे लिए नहीं है..
अपनों के बीच,
गैरो की याद नहीं आती।
और गैरो के बीच,
कुछ अपने याद आते हैं।
तब्दीली जब भी आती है मौसम की अदाओं में
किसी का यूँ बदल जाना बहुत ही याद आता है …
अजीब तरह के,
इस दुनीयाँ में मेले है… !
दिखती भीड़ है और,
चलते सब अकेले है… !!