आज समझ ले

आज समझ ले
कल ये मौका हाथ ना तेरे आएगा
ओ गफलत की नींद में सोने वाले कल पछतायेगा

चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा|

तू यहाँ मुसाफिर हैं

तू यहाँ मुसाफिर हैं, ये सरह फ़ानी है..
चार रोज़ की मेहमाँ तेरी जिंदगानी है..
जान, जमीं, जर जेवर कुछ न साथ जाएगा..
खाली हाथ आया हैं.. खाली हाथ जाएगा..
जान कर भी अनजाना बन रहा हैं दीवाने..
अपनी उमरेफनी पर तन रहा है दीवाने…
इस कदर तू खोया हैं इस जहां के मेले में…
तू खुदा को भुला है फस के इस झमेले में..
आज तक ये देखा हैं पानेवाला खोता है..
जिंदगी को जो समझा… जिंदगी पे रोता है..
मिटने वाली दुनिया का ऐतबार करता हैं…
क्या समझ के तू आखिर इससे प्यार करता हैं..
अपनी अपनी फिक्रो में जो भी हैं वो उलझा है..
जिंदगी हकीकत में क्या है कौन समझा है..