सिर्फ अपना ही

मोहब्बत तो सिर्फ शब्द है..
इसका अहसास तुम हो..

शब्द तो सिर्फ नुमाइश है..
जज्ब़ात तो मेरे तुम हो..

मन तो करता है

मन तो करता है कि तुझे पहचानने से भी इंकार कर दूँ……
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पर क्या करूँ…
तू मिले तो अच्छा ना मिले तो और भी अच्छा…
पर सुन ! मैं कम अच्छे में भी खुश हूँ….

वो अच्छे हैं

वो अच्छे हैं तो बेहत्तर, बुरे हैं तो भी कुबूल।
मिजाज़-ए-इश्क में, ऐब-ए-हुनर नहीं देखे जाते|