आग लगी थी

आग लगी थी मेरे घर को,
किसी सच्चे दोस्त ने पूछा..!
क्या बचा है ?
मैने कहा मैं बच गया हूँ..!
उसने हँस कर कहा फिर साले जला ही क्या है..

सोचा तो नहीं था

ऐसा कोई जिंदगी से वादा तो नहीं था
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं

था
तेरे लिये रातो में चाँदनी उगाई थी
क्यारियों में खुशबू की रोशनी लगाई थी
जाने कहाँ टूटी

है डोर मेरे ख्वाब की
ख्वाब से जागेंगे सोचा तो नहीँ था
शामियाने शामो के रोज ही सजाएं

थे
कितनी उम्मीदों के मेहमा बुलाएं थे
आके दरवाज़े से लोट गए हो ऐसे
यूँ भी कोई आयेगा

सोचा तो नहीं था…..

अभी तो तड़प

अभी तो तड़प-तड़प के

दिन के उजालों से निकला हू…
.
न जाने रात के अँधेरे और कितना रुलायेंगे.

तुम जरा हाथ

तुम जरा हाथ मेरा थाम के देखो तो सही लोग
जल जाएंगे महफ़िल में चिरोगों की तरह