हर वक़्त पल पल

हर दिन हर वक़्त
पल पल बेहिसाब जहन में
बस तुम ही तुम
आँखों में बस एक चेहरा
सिर्फ तुम सिर्फ तुम

हर घड़ी ख़ुद से

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँधता फिरता है मुझे घर मेरा

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा

जब तालीम का

जब तालीम का बुनियादी मकसद नौकरी का हासिल करना होगा,

तो समाज में नौकर ही पैदा होंगे रहनुमा नहीं….