उसको मिलने से पहले

उसको मिलने से पहले

कहीं बार सोचा था,
उस से मिलने के बाद कहीं बार सोचा हैं।
वो जो मिलती हैं मुझे, मुझे मिल

क्यूँ नही जाती..??

परेशान देखता हूँ आजकल

देखता हूँ आजकल

चहेरे -चहेरे पर मैं एक , थकान देखता हूँ आजकल ,
जिसको देखो उसको, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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परिंदों को नोचते हुये,आसमान देखता हूँ आजकल ,
कश्तियों से लड़ते हुये , तूफान देखता हूँ आजकल ।।
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सरहद के इस पार , उस पार , जब से तनाव बढ़ा ,
चूड़ी,कँगन सब जेवर, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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बू जिनके लिबास से गई नहीं मज़लुमो के खून की,
उन्ही के हाथो में गीता – कुरान देखता हूँ आजकल ।।
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मुफलिस के चूल्हो की,राख भी भूख से बिलखती है
पिर को चद्दर,पत्थरों में भगवान् देखता हूँ आजकल ।।
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खाकी , खद्दर और ये सियासते इतनी गन्दी हो गई
मंदिर मस्जिद को , लहू – लुहान देखता हूँ आजकल ।।
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ख़ौफ़ कोई छिप के बैठा है , ज़रूर बेटी के दिल में, मैं
आईने में अक्सर एक , हैवान देखता हूँ आजकल ।।
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जवान बेटी के माथे पे ,रोज – रोज शिकन देख कर
फ़िक्र में डूबा हुआ , रोज मकान देखता हूँ आजकल ।।
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अँधे देखने,बहरे सुनने लगे,जो थे गूँगे चिल्लाने लगे
आदालतों में रोज बिकाऊ,ईमान देखता हूँ आजकल ।।
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कारखानो का धुँआ दिलासे दे दे कर पास बुलाता है
मुफलिसी के घर का बच्चा,जवान देखता हूँ आजकल ।।
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कहीं पत्थर तोड़ता है , कही बर्तन धोता है , बचपन,
नन्हे-नन्हे हाथो में,कायदे परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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हौसले देख कर मुझ को अब ,और आजमाने लगी है
ज़िन्दगी के रोज नये ,मैं इम्तेहान देखता हूँ आजकल ।।
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तन्हा था कल तक “पुरव” तमाम रिश्तों की भीड़ में,
सोहरत आते ही घर रोज मेहमान देखता हूँ आजकल ।।

जिसकी तलवार की छनक से अकबर

जिसकी तलवार की छनक से
अकबर का दिल घबराता था
वो अजर अमर वो शूरवीर वो महाराणा कहला
ता था
फीका पड़ता था तेज सूरज का ,
जब माथा ऊचा करता था ,
थी तुझमे कोई बात राणा , अकबर भी तुझसे ड
रता था

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है
लगी है

आग कहाँ क्यूँ पता किया जाए

जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों से
नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए

कहा गया है सितारों को छूना मुश्किल है
कितना सच है कभी तजरबा किया जाए

किताबें

यूँ तो बहुत सी हैं मेरे बारे में
कभी अकेले में ख़ुद को भी पढ़ लिया जाए