फिर यूँ हुआ कि सब्र की उँगली पकड़ कर हम..
इतना चले कि रास्ते हैरान हो गए..
Category: हिंदी शायरी
सब्र तहज़ीब है
सब्र तहज़ीब है मुहब्बत की
और तुम समझते रहे बेज़ुबान हैं हम
मैंने कब तुम से
मैंने कब तुम से मुलाकात का वादा चाहा,
मैंने दूर रहकर भी तुम्हें हद से ज्यादा चाहा..
ना जाया कर मुझको
ना जाया कर मुझको
यूँ अकेला छोड़ कर…
सुबह शाम ही नहीं,
मुझे सारा दिन
तेरी जरूरत है……!!!
जो जिंदगी थी
जो जिंदगी थी मेरी जान..!तेरे साथ गई
बस अब तू उम्र के नक़्शे में वक़्त भरना.!
शाम का वक्त
शाम का वक्त हो और ‘शराब’ ना हो…!इंसान का वक्त इतना भी ‘खराब’ ना हो..
संभाल के रखना
संभाल के रखना अपनी पीठ को यारो….
“‘शाबाशी'”और ‘खंजर’ दोनो वहीं पर मिलते है ….
शहर के परिन्दे भी
शहर के परिन्दे भी जानते है पता मेरा,
बस तुम्हारे ही कदम इस चौखट पर पड़े नहीं !!
मत पूछ मेरे जागने की
मत पूछ मेरे जागने की बजह ऐ-चांद,
तेरा ही हमशक्ल है वो जो मुझे सोने नही देता….
तकिये के नीचे दबा कर
तकिये के नीचे दबा कर रखे है तुम्हारे ख़याल,
एक तस्वीर , बेपनाह इश्क़ और बहुत सारे साल.