वो भी आधी रात

वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी ……

फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं लोग …. ?

मुमकिन नहीं की

कोई तो लिखता होगा इन कागजों और पत्थरों का भी नसीब ।

वरना मुमकिन नहीं की कोई पत्थर ठोकर खाये और कोई पत्थर भगवान बन जाए ।

और कोई कागज रद्दी और कोई कागज गीता और कुरान बन जाए ।।

बस इतना कहूगाँ

जो बुरे वक्त मेँ मेरे साथ था उनके लिए मैँ बस इतना
कहूगाँ…..
मेरा अच्छा वक्त सिर्फ तुम्हारे लिए होगा…..!!