मेरी गली से गुजरा.. घर तक नहीं आया,
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अच्छा वक्त भी करीबी रिश्तेदार निकला…
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Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मेरी गली से गुजरा.. घर तक नहीं आया,
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अच्छा वक्त भी करीबी रिश्तेदार निकला…
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आँखे कितनी भी छोटी क्यों ना हो ,
ताकत तो उसमे सारे आसमान देखने की होती है ..
” मैं ” पसंद तो बहुत हूँ सबको,..पर……
जब उनको मेरी ज़रुरत होती हैं तब..!!
दो लफ्ज उनकी तारीफ मे क्या बोल दिए
मौसम ने भी आज अपना मिजाज ही बदल लिया
में जो समझता हु और हर कोई नहीं समझता और
जो लोग समझते है वो मुझे नहीं समझना.
अंदाज़ कुछ अलग हैं मेरे सोचने का ,
सब को मंजिल का शौक है और मुझे रास्तों का .
खिड़की से बाहर जो देखा तो आज फिर बादल बरस रहे थे,
और मैं अन्दर कतरा-कतरा तुम्हारी यादोँ मे भीग रहा था…!!!
उसने पूछा कि कौन सा तोहफा है मनपसंद,
मैंने कहा वो शाम जो अब तक उधार है…