मैं तो मोम था इक आंच में पिघल जाता…
तेरा सुलूक़ मुझे पत्थरों में ढाल गया….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मैं तो मोम था इक आंच में पिघल जाता…
तेरा सुलूक़ मुझे पत्थरों में ढाल गया….
कोई ये कैसे बताये के वो तन्हा क्यों हैं
वो जो अपना था वो ही और किसी का क्यों हैं
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों हैं
यही होता है तो आखिर यही होता क्यों हैं |
मुझे निकाल कर वो शख़्स मेरे घर में रहा ,
जिस की शोहरत के लिए मैं सदा सफ़र में रहा…!
मेरे हिस्से की दुनिया बनाई ही नहीं गई
तेरे नाम की साँसों के संग जी रहा हूँ मैं…
ख़ुद अपना ही साया डराता है मुझे,
कैसे चलूँ उजालों में बेख़ौफ़ होकर?
वो अकलमंद कभी जोश में नही आता,
गले तो लगता है,आगोश मे नही आता।
भूख रिश्तों को भी लगती है,
प्यार कभी परोस कर तो देखिए।
मिटती है भूख इनके ही दम से जहान की
ताक़त है कितनी देखिये लोगो किसान में….
ख़रीद सको न जिसको दौलत लूटा कर भी
बिक जाता है वो तो केवल एक मुस्कान में !
सितम याद आ रहा है रह रहकर..
मोहब्बत में कितने ज़ालिम सा था वो….