वो अनजान चला है
जन्नत को पाने की खातिर
बेख़बर को इत्तला कर दो की
माँ-बाप घर पर है|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो अनजान चला है
जन्नत को पाने की खातिर
बेख़बर को इत्तला कर दो की
माँ-बाप घर पर है|
बार बार रफू करता रहता हूँ
जिन्दगी की जेब…
कम्बखत फिर भी निकल जाते हैं
खुशियों के कुछ लम्हें…
ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही
ख़्वाहिशों का है…..
ना तो किसी को गम चाहिए और,
ना ही किसी को कम चाहिए….!!!
इतना तो किसी ने चाहा भी न होगा,
जितना मैने सिर्फ सोचा है……
इतना तो किसी ने चाहा भी न होगा,
जितना मैने सिर्फ सोचा है……
Koi muskurakar rakh gaya
meri kabr’a par mohabbat ka phool;
aaj ishq ki aankhon mein
khumaar utar aaya hai
Tu wo zaalim hai
jo dil mein rehkar bhi
mera na ban saka
aur dil wo kaafir,
jo mujhme rehkar bhi
tera ho gaya
कुछ लोग सिखाते है मुझे प्यार के क़ायदे कानून,
नही जानते वो इस गुनाह में हम सज़ा-ए-मौत के मुज़रिम हैं…….
Shor-e-vahshat bhi nahin,
tangi-e-daaman bhi nahin
mujh par utri hai
mohabbat badi tehzeeb ke sath
अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे..
गुनहगार नज़र को हिजाब आता हे..!
अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे..
गुनहगार नज़र को हिजाब आता हे..!”