कोई उम्मीद बर नहीं

कोई उम्मीद बर नहीं आती
नयी करेंसी नज़र नहीं आती

हम वहाँ हैं जहाँ से कैशियर को भी
लाइन हमारी नज़र नहीं आती

आगे आती थी खाली जेब पर हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती

तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए..

तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए…पहाड़ क्यों न हुए ?
तुम मेरे लिए पहाड़ क्यों हुए…रेत क्यों न हुए ?
रेत…पहाड़…मैं…सब वही
सिर्फ… “तुम” बदल गए
पहली बार भी
और
फिर…आखिरी बार भी…

रात हुई है

रात हुई है चाँद ज़मीं पर हौले-हौले उतरा है…..!!

तुम भी आ जाते तो सारा नूर मुकम्मल हो जाता…..!!