मैं नहीं जानता

दिले-नादाँ तुझे हुआ क्या है, आखिर इस दर्द की दवा क्या है,
हम हैं मुश्ताक और वो बेजार या इलाही ये माजरा क्या है?
हम भी मुंह में जुबान रखते हैं, काश पूछो कि मुद्दआ क्या है,
हमको उनसे वफा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफा क्या है
जान तुम पर निसार करता हूँ, मैं नहीं जानता दुआ क्या है?

जमाने की नजर में

जमाने की नजर में, थोड़ा सा अकड़कर चलना सीख ले ऐ दोस्त…..

मोम जैसा दिल लेकर फिरोगे तो, लोग जलाते ही रहेंगे….

ख़ाक से बढ़कर

ख़ाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती छोटी मोटी बात पे हिज़रत नहीं होती,.,
पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे और अब शहर जलें तो हैरत नहीं होती!!

मै खुश तो हूँ

कही दर्द की झीले, तो कही लहजे की करवटेँ..
उससे कहना मै खुश तो हूँ, मगर मेरा हर लफ़्ज रोता है..!

बेरूख़ी न दिखाओ

बेरूख़ी न दिखाओ के रात जाती है
नक़ाब रुख़ से उठाओ के रात जाती है

वो एक शब के लिए मेरे घर में आए हैं
सितारे तोड़ के लाओ के रात जाती है

तुम आये हो मैं ये कहता हूँ तुम नहीं आये
मुझे यकीन दिलाओ के रात जाती है

चराग-ए-दिल के उजाले को तुम सहर न कहो
बहाने यूँ न बनाओ के रात जाती है

तमाम उम्र पड़ी है शिकायतों के लिए
तुम आज दिल न दुखाओ के रात जाती है