मंजिल तो तेरी

मंजिल तो तेरी यही थी बस , जिंदगी गुजर गयी यहा आते
क्या मिला तुझे इस दुनिया से अपनों ने ही जला दिया जाते |

शायद ना लिख पाऊ

मै चाहू .. तो भी शायद ना लिख पाऊ उन लफ्जो को … जिन्हें पढ़ कर … तुम जान जाओ मुझे कितनी महोब्बत है तुम से …. !!

डूब सी गई है

डूब सी गई है गुनाहो में मेरी जिंदगी या रब कर दे रहमत मुझ पे भी … कही गुनहगार ही ना मर जाऊ ।