रहता हूं किराये के घर में

रहता हूं किराये के घर में…
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं….
मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी…
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं….
जल जायेगा ये मेरा घर इक दिन…
फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं….
खुद के सहारे मैं श्मशान तक भी ना जा सकूंगा…
इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ।

गुज़र गया आज का दिन भी

गुज़र गया आज का दिन भी
तमाम ख्वाहिशे लेकर..

साँसों ने शरीर का दामन ना छोड़ा
तो कल फिर मिलेंगे..
गुज़र गया आज का दिन भी
तमाम ख्वाहिशे लेकर..

साँसों ने शरीर का दामन ना छोड़ा
तो कल फिर मिलेंगे..

चार लाइन दोस्तों के नाम

चार लाइन दोस्तों के नाम

काश फिर मिलने की वजह मिल जाए
साथ जितना भी बिताया वो पल मिल जाए,
चलो अपनी अपनी आँखें बंद कर लें,
क्या पता ख़्वाबों में गुज़रा हुआ कल मिल जाए..
मौसम को जो महका दे उसे
‘इत्र’ कहते हैं
जीवन को जो महका दे उसे ही ‘मित्र’ कहते है l
क्यूँ मुश्किलों में साथ देते हैं दोस्त
क्यूँ गम को बाँट लेते हैं दोस्त
न रिश्ता खून का न रिवाज से बंधा है
फिर भी ज़िन्दगी भर साथ देते हैं दोस्त

वाह रे दोगले समाज

वाह रे दोगले समाज क्या तेरी सोच हैं…

पैसे वाले की बेटी..

रात के आठ बजे कही जाए..
तो “चलन” है…!

गरीब की बेटी…

अगर उसी वक्त पर डयूटी से आए..
तो “बदचलन” है..!!