किसी ने यूँ ही पूछ लिया हमसे कि दर्द की कीमत क्या है;
हमने हँसते हुए कहा,
“पता नहीं… कुछ अपने मुफ्त में दे जाते हैं।”
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
किसी ने यूँ ही पूछ लिया हमसे कि दर्द की कीमत क्या है;
हमने हँसते हुए कहा,
“पता नहीं… कुछ अपने मुफ्त में दे जाते हैं।”
पलकों तले भी अक्सर धड़कन महसूस होती है,
जब चूमा एक जोड़ी होठों ने तो अहसास हुआ..
एक पल के लिये सोचो कि यदि दोस्त ना होते तो क्या हम ये कर पाते
नर्सरी में गुम हुये पानी की बॉटल का ढक्कन कैसे ढूंढ पाते..
LKG में A B C D लिख कर होशियारी किसे दिखाते..
UKG में आकर हम किसकी पेन्सिल छुपाते..
पहली में बटन वाला पेन्सिल बॉक्स किसेदिखाते..
दूसरी में गिर जाने पर किसका हाथ सामने पाते..
तीसरी में absent होने पर कॉपी किसकी लाते..
चौथी में दूसरे से लड़ने पर डांट किसकी खाते..
पांचवी में फिर हम अपना लंच किसे चखाते..
छठी में टीचर की पिटाई पर हम किसे चिढाते..
सातवीं में खेल में किसे हराते / किससे हारते..
आठवीं में बेस्ट फ्रेंड कहकर किससे मिलवाते..
नवमीं में बीजगणित के सवाल किससे हल करवाते..
दसवीं में बॉयलाजी के स्केचेज़ किससे बनवाते..
ग्यारहवीं में “अपनीवाली” के बारे में किसे बताते..
बारहवीं में बाहर जाने पर आंसू किसके कंधे पर बहाते..
मोबाइल नं. से लेकर “उसकेभाई कितने हैं” कैसे जान पाते..
मम्मी, पापा,दीदी या भैय्या की कमी कैसे सहपाते..
हर रोज कॉपी या पेन भूल कर कॉलेज कैसे जाते..
“अबे बता” परीक्षा में ऐसी आवाज किसे लगाते..
जन्मदिनों पर केक क्या हम खुद ही अपने चेहरे पर लगाते..
कॉलेज बंक कर पिक्चर किसके साथ जाते..
“उसके” घर के चक्कर किसके साथ लगाते..
बहनों की डोलियां हम किसके कंधों के भरोसे उठाते.
ऐसी ही अनगिनत यादों को हम कैसे जोड़ पाते
बिना दोस्तों के हम सांस तो लेते पर,
शायद जिन्दगी ना जी पाते ।
सिखा दिया हैं जहां ने , हर जख्म पे हसना ……
.
ले देख जिन्दगी , अब तुझसे नही डरता …..!!
उलझा कर उन्हें कुछ अनसुलझे सवालों में..
..
आज जी भर के फिर मैंने देखा उन्हें..!!
खोए हुए हम खुद हैं,
और ढूंढते #भगवान को हैं |
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा…..काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा….काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब…।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता