सभी का खून है शामिल यहा की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोडी है
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सभी का खून है शामिल यहा की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोडी है
अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे..
गुनहगार नज़र को हिजाब आता हे..!
तूने कहा,सुना हमने अब मन टटोलकर सुन ले तू,
सुन ओ आमीर खान,अब कान खोलकर सुन ले तू,”
तुमको शायद इस हरकत पे शरम नहीं आने की,
तुमने हिम्मत कैसे की जोखिम में हमें बताने की
शस्य श्यामला इस धरती के जैसा जग में और नहीं
भारत माता की गोदी से प्यारा कोई ठौर नहीं
घर से बाहर जरा निकल के अकल खुजाकर पूछो
हम कितने हैं यहां सुरक्षित, हम से आकर पूछो
पूछो हमसे गैर मुल्क में मुस्लिम कैसे जीते हैं
पाक, सीरिया, फिलस्तीन में खूं के आंसू पीते हैं
लेबनान, टर्की,इराक में भीषण हाहाकार हुए
अल बगदादी के हाथों मस्जिद में नर संहार हुए
इजरायल की गली गली में मुस्लिम मारा जाता है
अफगानी सडकों पर जिंदा शीश उतारा जाता है
यही सिर्फ वह देश जहां सिर गौरव से तन जाता है
यही मुल्क है जहां मुसलमान राष्ट्रपति बन जाता है
इसकी आजादी की खातिर हम भी सबकुछ भूले थे
हम ही अशफाकुल्ला बन फांसी के फंदे झूले थे
हमने ही अंग्रेजों की लाशों से धरा पटा दी थी
खान अजीमुल्ला बन लंदन को धूल चटा दी थी
ब्रिगेडियर उस्मान अली इक शोला थे,अंगारे थे
उस सिर्फ अकेले ने सौ पाकिस्तानी मारे थे
हवलदार अब्दुल हमीद बेखौफ रहे आघातों से
जान गई पर नहीं छूटने दिया तिरंगा हाथों से
करगिल में भी हमने बनकर हनीफ हुंकारा था
वहाँ मुसर्रफ के चूहों को खेंच खेंच के मारा था
मिटे मगर मरते दम तक हम में जिंदा ईमान रहा
होठों पे कलमा रसूल का दिल में हिंदुस्तान रहा
इसीलिए कहता हूँ तुझसे,यूँ भड़काना बंद करो
जाकर अपनी फिल्में कर लो हमें लडाना बंद करो
बंद करो नफरत की स्याही से लिक्खी
पर्चेबाजी
बंद करो इस हंगामें को, बंद करो ये लफ्फाजी
यहां सभी को राष्ट्र वाद के धारे में बहना होगा
भारत में भारत माता का बनकर ही रहना होगा
भारत माता की बोली भाषा से जिनको प्यार नहीं
उनको भारत में रहने का कोई भी अधिकार नहीं”
टूटे हुए काँच की तरह चकना चूर हो गए..!
किसी को लग ना जायें इसलिए सबसे दूर हो गये.!
थोडा नादान हूँ, कभी कभी नादानी कर जाता हूँ,
किसी का दिल दुखाना मेरी फितरत नही है….
…
अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे..
गुनहगार नज़र को हिजाब आता हे..!”
दर दर भटक रही थी पर दर नहीं मिला,
उस माँ के चार बेटे हैं पर रहने को घर नहीं मिला।
Zindgi Gujar Jaye
Par….
Dosti Kam Na Ho,
Yaad Hame Rakhana,
Chahe Paas Ham Na
Ho,
Qayamat Tak Chalta
Rahe
Dosti Ka ye Safar,
Dua Karo Kabi
ye ……
RISHTA Khatam Na
ho…
सीख जाओ वक्त पर किसी की
कदर करना…
शायद सैल्फी इस बात का प्रमाण है के हम ज़िंदगी में
इतने अकेले रह गए है
कि हमारे आस पास हमारी फोटो खींचने वाले यार
दोस्त भी नहीं बचे”
शबे फुरकत का जागा हू फरिशतो अब तो सोने दो..
कर लेना हिसाब फिर कभी आहिस्ता आहिस्ता..!”