अब और ना मुझको

अब और ना मुझको तू उन पुराने किये हुए मेरे फिज़ूल से वादों का हवाला दे
बंद कर बक्से में तेरी यादों को कर सकूँ काम अपने, तू बस ऐसा मज़बूत सा ताला दे|

समझने वालों को

समझने वालों को तो बस इक इशारा काफी होता है
वरना कभी कभार बिन चाँद के भी रात का गुजारा होता है ।

उस फूल को

उस फूल को सनद की ज़रूरत ही क्या वसीम
जिस फूल की गवाही में ख़ुशबु निकल पड़े।