जुल्फें खोली हैं उन्होंने आज
और….
सारा शहर
बादलों को दुआ दे रहा है…
Tag: शर्म शायरी
मेरे इक अश्क़ की
मेरे इक अश्क़ की तलब थी उसको
मैंने बारिश को आँखों में बसा लिया |
सीधी और साफ हो…
परवाह नहीं चाहे जमाना कितना भी खिलाफ हो,
चलूँगा उसी राह पर जो सीधी और साफ हो…!
कोई था दिल में
कोई था दिल में,जो खो गया है शायद
वरना आईने में अश्क़ इतना धुन्धला ना होता..!!
बैठ कर किनारे पर
बैठ कर किनारे पर मेरा दीदार ना कर मुझको समझना है तो समन्दर में उतर के देख !!
वो लफ्ज़ कहा से
वो लफ्ज़ कहा से लाऊँ,जो तेरे दिल को मोम कर दे
मेरा वजूद पिघल रहा है,तेरी बेरुखी से..!!
किन लफ्ज़ों में
किन लफ्ज़ों में बयाँ करूँ मैं एहमियत तेरी..
तेरे बिन अक्सर मैं अधुरा लगता हूँ..
खिड़की के बाहर का
खिड़की के बाहर का मौसम बादल, बारिश और हवा…
खिड़की के अन्दर का मौसम आँसू, आहें और दुआ !
सोचा ही नहीं था..
सोचा ही नहीं था..
जिन्दगी में ऐसे भी फ़साने होगें…!!
रोना भी जरूरी होगा..
और आँसू भी छुपाने होगें…!!!
धरती पर शिद्दत से
आज भी आदत में शामिल है,
उसकी गली से होकर घर जाना.