तुम इतने कठिन क्यूँ हो की मैं तुम्हे समझ नहीं पाता,
थोड़े से सरल हो जाओ सिर्फ मेरे लिए !!
Tag: शर्म शायरी
रब के फ़ैसले पर
रब के फ़ैसले पर भला कैसे करुँ शक,
सजा दे रहा है ग़र वो कुछ तो गुनाह रहा होगा !!
उम्र भर ख़्वाबों की
उम्र भर ख़्वाबों की मंज़िल का सफ़र जारी रहा,
ज़िंदगी भर तजरबों के ज़ख़्म काम आते रहे…
लफ़्ज़ों से ग़लतफ़हमियाँ
लफ़्ज़ों से ग़लतफ़हमियाँ बढ़ रहीं है
चलो ख़ामोशियों में बात करते हैं.
पाया भी उन को
पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे,
इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं…
कोई होंठों पे
कोई होंठों पे उंगली रख गया था…
उसी दिन से मैं लिखकर बोलता हुँ|
इश्क की हिमाकत
इश्क की हिमाकत जो उनसे कर बैठे यूँ ही हम खुदसे बिछड़ बैठे !!!
उसने ऐसी चाल चली के
उसने ऐसी चाल चली के मेरी मात यकीनी थी,
फिर अपनी अपनी किस्मत थी,
हारी मैं, पछताया वो…..!!!!!!
तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए…
तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए…पहाड़ क्यों न हुए ?
तुम मेरे लिए पहाड़ क्यों हुए…रेत क्यों न हुए ?
रेत…पहाड़…मैं…सब वही
सिर्फ… “तुम” बदल गए
पहली बार भी
और
फिर…आखिरी बार भी…
ये तो कहिए इस ख़ता की
ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा,
ये जो कह दूं के आप पर मरता हूं मैं।।