जमीर ही आँख नही मिलाता वरना,
चेहरा तोआईने पर टूट पड़ता है….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जमीर ही आँख नही मिलाता वरना,
चेहरा तोआईने पर टूट पड़ता है….
गम ऐ बेगुनाही के मारे है,, हमे ना छेडो..
ज़बान खुलेगी तो,,
लफ़्ज़ों से लहू टपकेगा.
उम्मीद से कम चश्मे खरीदार में आए
हम लोग ज़रा देर से बाजार में आए..
तुझे रात भर ऐसे याद किया मैंने…
जैसे सुबह इम्तेहान हो मेरा ।
सवाल ये नहीं रफ्तार किसकी कितनी है …
सवाल ये है सलीक़े से कौन चलता है…!!
ये जरूरी तो नहीं कि उम्र भर प्यार के मेले हों
हो सकता है कभी हम तुम अकेले हों.
यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
लो आप अपने दम में सय्याद आ गया..
लिख कर बयां नही कर सकता
मैं हर गुफ़्तुगू,
कुछ था जो बस नज़रों से
नज़रों तक ही रहा..
जिंदा रहने पे तवज्जो ना कोई मिल पाई..
कत्ल होके मै,,,
एक शहर के अखबार में हूँ..
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम,
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है !!