अब कहाँ जरुरत है हाथों मे पत्थर उठाने की,
तोडने वाले तो जुबान से ही दिल तोड़ देते हैं…..
Tag: शर्म शायरी
कितनी ही शिद्दत से
कितनी ही शिद्दत से निभा लो तुम रिश्ता,
बदलने वाले बदल ही जाते हैं…!!!
जरूरत भर खुदा
जरूरत भर खुदा सबको देता है।
परेशां है लोग इस वास्ते कि, बेपनाह मिले।
गुनगुनाता जा रहा था
गुनगुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रहती है न छाया देर तक
तेरी नाराजगी वाजिब
तेरी नाराजगी वाजिब है… दोस्त
मैं भी खुद से खुश नहीं आजकल.
कभी कभी धोखा
इस कदर भूखा हूँ कि .. कभी कभी धोखा भी खा लेता हूँ…!!!!
याद मुलाक़ात की
है याद मुलाक़ात की वो शाम अब तक,
मैं तुझको भूलने में हूँ नाक़ाम अब तक…!
मौत का गवाह हूँ
बेतरतीब बेमकसद बेपरवाह हूँ
पिछली सदी की मौत का गवाह हूँ
फ़िक्र रहती है
एक काम करो…
इस दिल को तुम ही रख लो,
बड़ी फ़िक्र रहती है इसे तुम्हारी..!!
लगता है वो
उल्फ़त, मोहब्बत, वफ़ा, अफ़साने, अश्क। लगता है
वो आयी थी जिंदगी में
सिर्फ ऊर्दू सिखाने।