हाथों से मुकद्दर तो संवर सकती है,
लेकिन हाथों की लकीर में मुकद्दर नहीं होता है।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हाथों से मुकद्दर तो संवर सकती है,
लेकिन हाथों की लकीर में मुकद्दर नहीं होता है।
मै भी मै भी इंसान हूँ तम भी मै भी इंसान हूँ,
तु पढ़ता है “वेद” हम पढ़ते “क़ुरान” है।
कमबख्त इस दिल को हारने की आदत हो गयी है!
वरना हमने जहाँ भी दिमाग लगाया फ़तेह ही पाई है!!
उसके मिरे ख़याल जुदा थे हरेक तौर
हमराह था वो मेरा, मिरा हमसफ़र न था
हैरत की बात है कि दुआ भी न आयी काम
माना किसी मतलब से दवा में असर न था
मशवरा तो देते रहते हो..
“खुश रहा करो”..
कभी कभी वजह भी दे दिया करो
बेवक्त
बेवजह
बेसबब सी
बेरुखी तेरी.
और फिर भी तुझे बेइन्तहाँ
चाहने की बेबसी मेरी…
किसी को खुश करने का
मौका मिले तो खुदगर्ज ना बन जाना…
बड़े नसीब वाले होते है वो,
जो दे पाते है मुस्कान किसी चेहरे पर…!
दूध का सार है मलाई मे……!
और
जिंदगी का सार है भलाई में…….!!
हर रोज के मिलने में तकल्लुफ़ कैसा,
चाँद सौ बार भी निकले तो नया लगता है….!!!
ज़रा सी चोट को महसूस करके टूट जाते हैं !
सलामत आईने रहते हैं, चेहरे टूट जाते हैं !!
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पनपते हैं यहाँ रिश्ते हिजाबों एहतियातों में,
बहुत बेबाक होते हैं वो रिश्ते टूट जाते हैं !!
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नसीहत अब बुजुर्गों को यही देना मुनासिब है,
जियादा हों जो उम्मीदें तो बच्चे टूट जाते हैं !!
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दिखाते ही नहीं जो मुद्दतों तिशनालबी अपनी,
सुबू के सामने आके वो प्यासे टूट जाते हैं !!
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समंदर से मोहब्बत का यही एहसास सीखा है,
लहर आवाज़ देती है किनारे टूट जाते हैं !!
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यही एक आखिरी सच है जो हर रिश्ते पे चस्पा है,
ज़रुरत के समय अक्सर भरोसे टूट जाते हैं