वो मेरी आखरी सरहद हो जैसे,
सोच जाती ही नहीं उस से आगे…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो मेरी आखरी सरहद हो जैसे,
सोच जाती ही नहीं उस से आगे…
वो आँगन आँगन नहीं होता जहाँ बेटियाँ नहीं
खेलतीं
वो रसोई रसोई नहीं होती जहाँ मांयें
रोटियाँ नहीं बेलतीं ।
सुनो, कैसे पढ़ते हो जनाज़ा उसका
वो लोग जो अंदर से मर जाते है|
अजीब नींद मेरे नसीब में लिखी है…
पलकें बंद होती है… तो दिल जाग जाता है…
वो जब देखेगी उलझ सा जाऊँगा,
नज़रे मिलाऊ या नज़र भर देखू।
किसी ने क्या खूब लिखा है…..
सांप बेरोजगार हो गये,
अब आदमी काटने लगे
टूटता हुआ तारा सबकी दुआ पूरी करता है..
क्यों के उसे टूटने का दर्द मालूम होता है….
हो मेरी, कि इतनी मोहब्बत दूंगा ।
लोग हसरत करेंगे, तेरे जैसा नसीब पाने को ।.
वो मेरी आखरी सरहद हो जैसे,
सोच जाती ही नहीं उस से आगे…
देख ली समंदर की दरियादिली…,
साँसें ले कर…लाश बाहर फेंक दी…।