अगर देखनी है कयामत तो चले आओ हमारी महफिल मे
सुना है आज की महफिल मे वो बेनकाब आ रहे हैँ|
Tag: शर्म शायरी
हद से बढ़ जाये
हद से बढ़ जाये तालुक तो गम मिलते हैं..
हम इसी वास्ते अब हर शख्स से कम मिलते हँ..
हाँथों की उन लकीरों को
हाँथों की उन लकीरों को ढूंढ रहा हूँ ,
जिन में तू सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी लिखी गई है|
तेरी तस्वीर को
तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है ,
हमने दुनिया से अलग गांव बस रखा है|
ज़हर लगते हो
ज़हर लगते हो तुम मुझे…
जी करता है खा कर मर जाऊ |
दाग दुशमन से
दाग दुशमन से भी झुककर मिलिए
कुछ अजीब चीज है मिलनसारी|
मोटी रकम में
मोटी रकम में बिक रहा हूँ
जो नहीं हूँ वो दिख रहा हूँ,
कलम पे है दबाव भारी कि
नायाब कविता लिख रहा हूँ।
ना जाने कैसे
ना जाने कैसे इम्तेहान ले रही है जिदगी,
आजकल, मुक्दर, मोहब्बत और दोस्त
तीनो नाराज रहते है|
मिली है अगर
मिली है अगर जिंदगी तो मिसाल बन कर दिखाइये…
वर्ना इतिहास के पन्ने आजकल रिश्वत देकर भी छपते है|
क्यूँ हर बात में
क्यूँ हर बात में कोसते हो तुम लोग नसीब को,
क्या नसीब ने कहा था की मोहब्बत कर लो !!