रौनकें कहां दिखाई देती हैं,
अब
पहले जैसी…
अखबारों के इश्तेहार बताते हैं,
कोई त्यौहार आया है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रौनकें कहां दिखाई देती हैं,
अब
पहले जैसी…
अखबारों के इश्तेहार बताते हैं,
कोई त्यौहार आया है…
वक़्त के साथ हर कोई बदल जाता है
गलती उसकी नहीं जो बदल जाता है
बल्कि गलती उसकी है जो
पहले जैसा रह जाता है
कल भी हम तेरे थे…आज भी हम तेरे है.. बस फर्क इतना
है
पहले अपनापन था…अब अकेलापन है..
लो आज हम तुमसे निकाह-ए-इश्क करते हैं ……
हाँ मुझे तुमसे “मोहब्बत है , मोहब्बत है , मोहब्बत है”……..
अब तेरा ऐतबार तो कभी करना ही नहीं.. ऐ-दिल..!
…
उजाड़ बैठा है तू हमे, बे-ईमान कहीं का..!!
ग़मों ने मेरे दामन को यूँ थाम लिया है …
..
जेसे उनका भी मेरे शिव कोई नही…!!
कुछ विरान सी नज़र आती दिल की दिवार..
..
सोचता हूँ, तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ !
हमने टूटी हुई शाख पर अपना दर्द छिड़का है …
…
फूल अब भी ना खिले तो, क़यामत होगी ।
कबड्डी पूरी तरह से भारतीय खेल है।
कैसे?
इसमें सब लोग एक साथ मिलकर एक ऐसे आदमी को
नीचे गिराने में लगे रहते हैं, जो बेचारा कुछ करने आगे
आया है।
नींद और मौत में क्या फर्क है…?
किसी ने क्या खूबसूरत जवाब दिया है….
“नींद आधी मौत है”
और
“मौत मुकम्मल नींद है”