हर सजा कुबूल की हमने,
कसूर सिर्फ इतना था की हम बेकसूर थे..
Tag: व्यंग्य
चाहा जिसको मैंने
चाहा जिसको मैंने वो मुझसे हठीला हो गया ।
दिल उसकी वफ़ा में और नशीला हो गया ।।
बिन धागे की सुई
बिन धागे की सुई सी हो गयी है, ये जिंदगी,
सिलती कुछ नही बस चुभती जा रही है..
अब इंतज़ार की आदत
अब इंतज़ार की आदत भी छोड़नी होगी,
उसने साफ साफ कह दिया भूल जाओ मुझे..
लिख दू कुछ
लिख दू कुछ ऐसा या कुछ ऐसा काम मैं कर जाउ,
फूट-फूट कर रोऐ दुनिया जिस दिन मैं मर जाउ|
वो हमे चाहे
वो हमे चाहे कितना भी बड़ा धोखा ही क्यों ना दे दे,
लेकिन दिल में उसे माफ़ करने की चाहत कही ना कही जरूर रहती है..
जब भी देख़ता हूँ
जब भी देख़ता हूँ ….. तेरे इश्क़ की पाकीज़गी ……..
दिल करता …… तेरी रूह को काला टीका लगा दूँ …!!
जब बात रिहाई की
जब बात रिहाई की आयी
पता नहीं जुदाई लगी मुझे।
जितनी तकलीफ देनी है
सुन पगली, जितनी तकलीफ देनी है दे,
में खुद रो कर तुझे हमेशा हसाऊंगा..
भीड़ इतनी भी न थी..
ढूंढ तो लेते अपने प्यार को हम,
शहर में भीड़ इतनी भी न थी..
पर रोक दी तलाश हमने,
क्योंकि वो खोये नहीं थे,
बदल गये थे…..