बिमार की चाहत है

बिमार की चाहत है,
जख्म के भरने की।
जख्म की ख्वाहिश है,
बिमार के मरने की॥
दोनो भी जुनून से,
खेल रहे जुआ।
मसल देगी तकदीर को,
आपकी दुआ॥

ख्वाहिश ये बेशक नही

ख्वाहिश ये बेशक नही
कि
“तारीफ” हर कोई करे…!

मगर
“कोशिश” ये जरूर है
कि कोई बुरा ना कहे..”

संभाल के खर्च करता हूँ खुद को दिनभर …
हर शाम एक आईना मेरा हिसाब करता है ..