सिखा दिया

सिखा दिया ‘तुने’ मुझे… अपनों पर भी ‘शक’ करना..
मेरी ‘फितरत’ में तो था… गैरों पर भी ‘भरोसा’ करना!!

कभी किसी को

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमे धुआँ नहीं मिलता

तेरे जहाँ में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता

अमन की आस लिए

अमन की आस लिए कुछ फनकार उसपार से इसपार आना चाहते थे

पर कुछ जालिम हे जो
अमन को आतंक समज ते थे

कितने कमज़ोर है

कितने कमज़ोर है यह गुब्बारे, चंद सासों में फूल जाते है,
बस ज़रा सी बुलंदिया पाकर, अपनी औकात भूल जाते है…