मैं तुझसे अब

मैं तुझसे अब कुछ नहीं मांगता ऐ ख़ुदा,
तेरी देकर छीन लेने की आदत मुझे मंज़ूर नहीं।।

इश्क़ का कैदी

इश्क़ का कैदी बनने का अलग ही मज़ा है,
छुटने को दिल नहीं करता और उलझने में मज़ा आता है।।

ना थी मेरी तमन्ना

ना थी मेरी तमन्ना कभी तेरे बगैर रहने की लेकिन,
मज़बूर को, मज़बूर की, मज़बूरियां, मज़बूर कर देती हैं…।।