अजीब खेल है

अख़बार का भी अजीब खेल है
सुबह अमीर की चाय का मजा बढाता है
और रात में गरीब के खाने की थाली बन जाता है…!

वो लमहा भी

जरूरी नही की हर समय लबो पर खुदा का नाम आये ।।

वो लमहा भी इबादत का होता है…
जब इनसान किसी के काम आये…

हाथ की लकीरें

हाथ की लकीरें पढने वाले ने तो….
मेरे होश ही उड़ा दिये..!

मेरा हाथ देख कर बोला…

“तुझे मौत नहीं किसी की चाहत
मारेगी…

आ के अब

आ के अब यूँ सहा नहीं जाता
दूर तुझ से रहा नहीं जाता
दरगुज़र िकतना भी करलूँ
मुझसे अब चुप रहा नहीं जाता
नेक बख़ती की बात सुनता हूँ
तो भी अच्छा हुआ नहीं जाता
दिल में ऐसी उमंग उठती है
चाहूँ भी बारहा, नहीं जाता
क्यों पसो पेश में पड़ा है तू
यार सोचा इतना नहीं जाता
दूर रख अब दिमाग़ को आज
कुछ इसे भी समझ नहीं आता
िजसका मैदान है उसे मालूम
क्या सही है और क्या भाता
पूरा भर इश्क़ से प्याले को
ख़ाली थोड़ा रहे छलक जाता
सेरी तो ितशनगी से बेहतर
दूसरा’ कुछ नज़र नहीं आता
आ इधर, छोड़ सारी बात
कर पहल, आगे है दातासब है
आसान ठान ले गर तू
तेज़ क़दमों से घर नहीं आता !

Yeh Bhhegi Palkein

Woh Baad Muddat Ke Jab Mila To Uss Ne Poocha ..

Yeh Khushk Zulfein ..
Yeh Bhhegi Palkein ..
Yeh Dasht Aankhein ..
Yeh Kaasni Lab ..

Kidhar Ganwa Diye ..?

Woh Shokh Aankhein ..
Woh Narm Baatein ..
Woh Surkh Aariz..
Woh Garm Saansein ..
Woh Khil Ke Hansna ..
Woh Chahchahana ..
Kya Hua Hai.. ?
Kidhar Gaye Sab.. ?

To Main Yeh Bola ..

Mohabbaton Ka Asool Hai Yeh,
Aur Wafa Ka Sila Yahi Hai,
Luta Ke Sapney,
Ganwa Ke Aankhein,

Mohabbaton Mein Mila Yahi Hai.

Laakh samjhaya magar nahin maane,
Woh Jaan-Jaan kahte thhey ;
Jaan lekar hi maane.

लेकर आना उसे

लेकर आना उसे मेरे जनाजे में,
एक आखरी हसीन मुलाकात होगी..!

मेरे जिस्म में जान न हो मगर,
मेरी जान तो मेरे जिस्म के पास होगी..!!