अजीब ओ गरीब

मेरी ‘जिद्द ‘ भी कुछ अजीब ओ गरीब सी है ।

कहती है ..तुम मुझसे ‘नफरत’ करो पर गैरों से’मोहब्बत’ नही

मैं भूल सा गया हूँ

मैं भूल सा गया हूँ तुम्हारे बारे में लिखना आजकल
सुकून से तुम्हें पढ़ सकूँ इतना भी वक्त नहीं देती है ये जिंदगी

ना जाने कैसे

ना जाने कैसे इम्तेहान ले रही है..
जिँदगी आजकल
मुक्दर, मोहब्बत और दोस्त तीनो नाराज रहते है…..

कमाल का कारीगर

खुदा तुं भी कमाल का कारीगर नीकला,

खींच क्या लि दो तीन लकीर तूने हाथोंमे

ये भोला इन्सान उसे तक़दीर समझने लगा.. ||

अब इस से भी

अब इस से भी बढ़कर गुनाह-ए-आशिकी क्या होगा !
जब रिहाई का वक्त आया..तो पिंजरे से मोहब्बत हो चुकी थी |