हाँ…
अब कम
लिखता हूँ….
नुमाइश गम की हो या जख्म की, अच्छी नहीं होती…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हाँ…
अब कम
लिखता हूँ….
नुमाइश गम की हो या जख्म की, अच्छी नहीं होती…
वैसे ही
दिन,वैसी ही रातें,वही रोज़ का फ़साना लगता है…
अभी चार दिन नहीं
गुजरे,साल अभी से पुराना लगता है…
ऐ इश्क मै सुना था कि तू अन्धा है ..
फ़िर रास्ता मेरे दिल का बताया किसने
एक शायर के घर चोरी हुई,
कोई अल्फ़ाज़ चुरा के ले गया….
main us ko chaand kehta ye mumkin to he magar log usy raat bhar dekhe ye mujhe gawara nahi.!
आज मारने वाले कहते है ….
हम बचायेगे आपको…
जो पानी के लिये …
मूतने की बात करते थे….
Saare Shikwe Janab Tere Hai,
Dil Pe Saare Azaab Tere Hai,
Tum Yaad Aao To Nind Nahi Aati,
Nind Aaye To Saare Khwab Tere Hai…
Iss tarah kuch aajkal apna mukkadar ho gaya…
Sar ko chaadar se dhaka toh paav bahaar ho gaya…!!!
ये तो बड़ा मुझ पर अत्याचार हो गया,
खामख्वाह मुझे तुझसे प्यार हो गया
Tum Mohabbat Ke Kon Se Taqazo Ki Baat Karte
Ho..!! Ae DosT !!!
Yaha Toh Log Khuda Ko Bhi Fursat Mile To
Yaad Karte Hai..!!