पलट कर न आ

पलट कर न आ जाये फ़िर सांस नब्ज़ों में..
इतने हसीन हाथो से मय्यत सजा रहा है कोई..

एक सवेरा था

एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है…

और कुछ भी

और कुछ भी दरकार नहीँ मुझे तुझसे मौला,

मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे..!!