तेरी चाहत ने अगर मुझको न मारा होता,
मैं ज़माने में किसी से भी न हारा होता….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तेरी चाहत ने अगर मुझको न मारा होता,
मैं ज़माने में किसी से भी न हारा होता….
दिल बेचैन बहुत है आज !!!
कहीं तुम उदास तो नही
कहाँ मांग ली थी कायनात जो इतनी मुश्किल हुई ए-खुदा,
सिसकते हुए शब्दों में बस एक शख्स ही तो मांगा था…!!!
दबे दबे होंठो से कुछ बात आज कह दो,
दिल मैं जो दबाये हैं वो अरमान आज कह दो,
कह दो कि…
मुझसे कितना प्यार करते हो,
कह दो कि…
दिल में सिर्फ मुझको रखते हो,
…न कह सको अगर होंठो से कुछ,
तो प्यार के कुछ ख़त मेरे नाम कर दो,
कुछ तो कहो कुछ इशारा तो दो,
हवाओं के झोंको से कह दो,
या खूबसूरत फ़िज़ाओं से,
बस प्यार है मुझसे एक बार तो कह दो,
नहीँ कहते हो मुझसे कुछ तब भी कुछ इशारे होते हैं,
ना जाने क्या कशिश है तुम्हारी आँखों में…
कि देख के मुझे ये झुक जाती हैं,
थोड़ी थोड़ी हया आती है इनको,
और लज्जा से ये शर्मा जाती हैं,
कभी कभी दांतो से होंठों को दबाने लगते हैं,
…तो कभी कभी खुद मैं सिमटने लगते हैं,
शायद ये दिल को पहली बार हुआ है,
कुछ मीठा सा एहसास है,
कई लोगो ने मुझसे कहा शायद तुम्हे भी प्यार हुआ है,
कैसे ये जान लूँ क्यों लोगों की बात मान लूँ…
एक बार ही सही दबे दबे होंठो से कुछ बात कह दो,
कि है आग प्यार की आपके दिल में दबी कहीं,
इतना एक बार कह दो,
मेरी कश्मकश को एक नाम दे दो,
प्यार का कोई पैगाम दे दो,
फिर लिखो कोई दिल की कहानी,
कि थी कोई हीर जो थी रांझे की दीवानी,
…जिसने माना था तुम्हें प्यार और कहा था,
कि दबे दबे होंठो से कुछ बात कह दो,
“मीत” है तुम्हें भी है प्यार मुझसे…
…इतना बस एक बार कह दो !!
इन्तहां लिखी इकरार लिखा,
पल पल का इंतज़ार लिखा,
तेरी यादों को दिल में बसा के,
हर रोज़ तुझे पैगाम लिखा…
सूने सूने तुझ बिन जीवन को,
पतझड़ का मौसम लिखा,
तेरी यादों के नील गगन में,
तन्हा कोई मंज़र लिखा…
तुझ बिन चलती इन सांसो को,
निष्प्राण कोई जीवन लिखा,
मेरे खयालों के हर पन्ने में,
तेरा ही कोई ज़िक्र लिखा…
रूठी रूठी रातों में,
जगती हुई इन आँखों में,
आंसुओं का सैलाब लिखा,
तुझ बिन कहीं हैँ खोये रहते,
जीते हुए भी पल पल मरते,
तेरी इन यादों का हर बातों का,
हर लम्हा हर पल लिखा…
मीत यादों को दिल में बसाके,
रोज़ तुझे पैगाम लिखा !!
फासला नज़रों का धोखा भी हो सकता है।
वो मिले ना मिले तुम हाथ बढ़ा कर देखो
क्यों कोई मेरा इंतज़ार करेगा,
अपनी ज़िंदगी मेरे लिए बेकार करेगा,
हम कौन सा किसी के लिए ख़ास है,
क्या सोच कर कोई हमें याद करेगा !!
मौत का आलम देख कर तो ज़मीन भी दो गज़ जगह दे देती है…
फिर यह इंसान क्या चीज़ है जो ज़िन्दा रहने पर भी दिल में जगह नहीं देता…
दूरियां भी क्या क्या
करा देती हैं….
कोई याद बन गया….
कोई ख्वाब…
मुमकिन नहीं है हर रोज मोहब्बत के नए, किस्से
लिखना……….!!
मेरे दोस्तों अब मेरे बिना अपनी, महफ़िल सजाना सीख
लो…….!!