कल ख़ुशी मिली थी
जल्दी में थी, रुकी नहीं
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कल ख़ुशी मिली थी
जल्दी में थी, रुकी नहीं
इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
या ग़म न दिया होता, या दिल न दिया होता
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल……
हार जाने का हौसला है मुझे !
खतावार समझेगी दुनिया तुझे ..
अब इतनी भी ज्यादा सफाई ना दे
जिस्म फिर भी थक हार कर सो जाता है ….
ज़हन का भी कोई बिस्तर होना चाहिए …
चीर के ज़मीन को मैं उम्मीदें बोता हूँ
मैं किसान हूं चैन से कहाँ सोता हूँ
इस शहर में मजदूर जैसा दर बदर कोई नहीं
सैंकड़ों घर बना दिये पर उसका कोई घर नहीं|
वो सर को झुकाना ऑ तस्लीम कहना,
किताबों का बस फ़लसफ़ा होगये हैं!
हनत करते थकता नहीं
मजदूर का बदन,
और अमीर नोट भी गिनते है
तो मशीन लगाकर…
ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो
कुछ आदतें बुरी भी सीख लो..
ऐब न हों..
तो लोग महफ़िलों में भी नहीं बुलाते…!