मुमकिन हुआ तो तुम्हे माफ करूँगा मैं…
फिलहाल तो तेरे आंसुओ का मुन्तज़िर हूँ…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुमकिन हुआ तो तुम्हे माफ करूँगा मैं…
फिलहाल तो तेरे आंसुओ का मुन्तज़िर हूँ…
उम्र भर चल के भी पाई नहीं मंज़िल हम ने,
कुछ समझ में नहीं आता ये सफ़र कैसा है…
पहले तो अपने दिल की रजा जान जाइये
फिर जो निगाहे यार कहे मान जाइये
कुछ कह रही है आप की सीने की धड़कने, मेरी सुनिये तो दिल का कहा मान जाइये
एक धुप सी जमी है आखो के आस पास आप है तो आप पर कुर्बान जाइये।
कहाँ तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए |
बैठे थे अपनी मस्ती में की अचानक तड़प उठे,
आ कर तुम्हारी याद ने अच्छा नहीं किया !!
यादों की हवा चल रही है,
शायद आँसुओं की बरसात होगी .
मुनासीब हो तो बात कर लिया करो यार…
वरना हमें तो पता ही है अजीज नहीं हम तेरे
सिर्फ वक्त ही गुजारना हो तो किसी और को आजमा लेना,
हम तो चाहत और दोस्ती दोनों इबादत की तरह करते है|
सिखा दिया हैं जहाँ ने, हर जख्म पे हसना….!!
ले देख जिन्दगी, अब मै तुझ से नही डरता….!!
निकाल दिया उसने हमें अपनी ज़िन्दगी से भीगे कागज़ की तरह,
ना लिखने के काबिल छोड़ा, ना जलने के |