जनाब मत पूछिये हद हमारी गुस्ताकियो की…
हम आईना जमी पर रखकर आसंमा कुचल देते है
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जनाब मत पूछिये हद हमारी गुस्ताकियो की…
हम आईना जमी पर रखकर आसंमा कुचल देते है
जिंदगी में अपनापन तो हर कोई दिखाता है..
पर अपना हैं कौन ?यह वक़्त ही बताता हैं
तकदीर के रंग कितने अजीब है,
अनजाने रिश्ते है फिर भी हम
सब कितने करीब हैं !
तकदीर के रंग कितने अजीब है,
अनजाने रिश्ते है फिर भी हम
सब कितने करीब हैं !
कोई छाँव, तो कोई शहर ढूंढ़ता है
मुसाफिर हमेशा ,एक घर ढूंढ़ता है।।
बेताब है जो, सुर्ख़ियों में आने को
वो अक्सर अपनी, खबर ढूंढ़ता है।।
हथेली पर रखकर, नसीब अपना
क्यूँ हर शख्स , मुकद्दर ढूंढ़ता है ।।
जलने के , किस शौक में पतंगा
चिरागों को जैसे, रातभर ढूंढ़ता है।।
उन्हें आदत नहीं,इन इमारतों की
ये परिंदा तो ,कोई वृक्ष ढूंढ़ता है।।
अजीब फ़ितरत है,उस समुंदर की
जो टकराने के लिए,पत्थर ढूंढ़ता है
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वो जो दो पल थे
तेरी और मेरी मुस्कान के बीच
बस वहीँ कहीं
इश्क़ ने जगह बना ली.?
उड़ रही है पल – पल ज़िन्दगी रेत सी..!और हम को
वहम है कि हम बडे हो रहे हे..!!
मैंने अपनी मौत की अफवाह उड़ाई थी, दुश्मन भी कह उठे आदमी अच्छा था…!!!
मेरी खामोशी अलामत है मेरे इखलाख की
इसे बेजूबानी ना समझो
अकेले हम ही शामिल नहीं हैं इस जुर्म में जनाब,
नजरें जब भी मिली थी मुस्कराये तुम भी थे….!!!!