बीती जो खुद पर तो कुछ न आया समझ
मशवरे यूं तो औरों को दिया करते थे..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बीती जो खुद पर तो कुछ न आया समझ
मशवरे यूं तो औरों को दिया करते थे..
तेरे मुस्कुराने का असर सेहत पे होता है,
लोग पूछ लेते है..दवा का नाम क्या है..!!
हवा चुरा ले गयी थी
मेरी ग़ज़लों की किताब..
देखो, आसमां पढ़ के रो रहा है
और नासमझ ज़माना खुश है कि बारिश हो रही है..!
वो जिसकी याद मे हमने खर्च दी जिन्दगी अपनी।
वो शख्श आज मुझको गरीब कह के चला गया ।।
लिखते है सदा उन्ही के लिए,जिन्होने हमे कभी पढा नही…!
माफ़ी चाहता हूँ गुनाहगार हूँ तेरा ऐ दिल…!!
तुझे उसके हवाले किया जिसे तेरी कदर नहीं…
आँखों मैं आग है,तो होंठों पर है धुंआं
आदमी हो गया है करखानों की तरह|
बारिश में उछलते भीगते मेरे बचपन को….
अब दफ्तर की खिड़की से निहार लेता हूं….!
तुमसे मिलने का हमने निकाल लिया एक रास्ता…..
झांक लेते हैं दिल में …आँखों को बन्द करके…!
सब को आता नहीं,कानून से लड़ने का हुनर
आस मजबूर की इंसाफ पे ठहरी देखी