एक रूह है..
जैसे जाग रही है.. एक उम्र से… ।
एक जिस्म है..
सो जाता है बिस्तर पर.. चादर की तरह… ।।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
एक रूह है..
जैसे जाग रही है.. एक उम्र से… ।
एक जिस्म है..
सो जाता है बिस्तर पर.. चादर की तरह… ।।
अगर फुर्सत के लम्हों मे
आप मुझे याद करते हो
तो अब मत करना..
क्योकि मे तन्हा जरूर हुँ,
मगर फिजूल बिल्कुल नही|
कभी यूँ भी हुआ है हंसते-हंसते तोड़ दी हमने…
हमें मालूम नहीं था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें..!
कई रिश्तों को परखा तो नतीजा एक ही
निकला,
जरूरत ही सब कुछ है, महोब्बत कुछ नहीं
होती.
मुझ पर इलज़ाम झूठा है ….
मोहब्बत की नहीं थी….
हो गयी थी|
वो रूह में उतर जाये तो पा ले मुझको
इश्क़ के सौदे मैं जिस्म नहीं तौले जाते|
हिचकियों में वफ़ा को ढूँढ रहा था मैं..!
कमबख्त गुम हो गई…दो घूँट पानी से .. !!
अब कहां दुआओं में वो बरकतें,…वो नसीहतें …वो हिदायतें,
अब
तो बस जरूरतों का जुलुस हैं …मतलबों के सलाम हैं”………
हमने भी मुआवजे की
अर्जी डाली है साहब,
उनकी यादों की बारिश ने
काफ़ी नुकसान पहुँचाया है !!
एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर
सो उठा लाया हूँ सब ख़्वाब पुराने वाले |