अगर मोहब्बत की हद नहीं कोई ,
तो फिर दर्द का हिसाब क्यों रखूं ?
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अगर मोहब्बत की हद नहीं कोई ,
तो फिर दर्द का हिसाब क्यों रखूं ?
रोने से किसी को पाया नहीं जाता,
खोने से किसी को भुलाया नहीं जाता,
वक्त सबको मिलता है ज़िंदगी बदलने के लिए,
पर ज़िंदगी नहीं मिलती वक्त बदलने के लिए !!
जिन्दा रहो जब तक ,लोग कमियां ही निकालते हैं ,
मरने के बाद जाने कहाँ से इतनी अच्छाइयां ढूंढ लाते है
कितनी मासूम होती है ये दिल की धड़कनें,
कोई सुने ना सुने ये खामोश नही रहती..
नसीहतें अच्छी देती है दुनिया,
अगर दर्द किसी और का हो..
आया कुछ इस अदा से के पलकों को भिगो गया,
झोंका तेरे ख्याल का कितना अजीज था.
अपनो की चाहतो ने दिए ऐसे फरेब..
रोते रहे लिपट कर, हर अजनबी से हम..!
दर्द हल्का है, सांसे भारी है …
जिए जाने की ” रस्म ” जारी है |
क्यूँ शर्मिंदा करते हो रोज, हाल हमारा पूँछ कर ,
हाल हमारा वही है जो तुमने बना रखा हैं…
अजीब था उनका अलविदा कहना,
सुना कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं,
बर्बाद हुवे उनकी मोहब्बत में,
की लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नही