मेरे ग़ज़लों में

मेरे ग़ज़लों में हमेशा, ज़िक्र बस तुम्हारा रहता है…

ये शेर पढ़के देखो कभी, तुम्हे आईने जैसे नज़र आएंगे

आईना बड़ी शिद्दत से

आईना बड़ी शिद्दत से वो अपने पास रखते हैं
जिसमे देखकर अपनी सूरत वो खुद संवरते हैं
दर्पण तो दर्पण है वो सबका अपना प्यारा है
सम्हाल के रखना ये जल्दी टूटकर बिखरते हैं…

आग लगाना मेरी

आग लगाना मेरी फ़ितरत में नहीं..,
पर लोग मेरी सादगी से ही जल जाये…
उस में मेरा क्या क़सूर…!!

जिसे शिद्दत से

जिसे शिद्दत से चाहो वो मुद्दत से मिलता है,

बस मुद्दतों से ही नहीं मिला कोई शिद्दत से चाहने वाला!

कौन कहता है

कौन कहता है दुनिया में
हमशक्ल नहीं होते
देख कितना मिलता है
तेरा “दिल” मेरे “दिल’ से.!