इस कब्र में भी

इस कब्र में भी सुकूं की नींद नसीब नही हुई गालिब…

रोज फरिश्ते आकर कहते है आज कौई नया शेर सुनाओ|

कुछ है जो

कुछ है जो खत्म हो रहा है अंदर से
मेरे……
बेज़ुबान पहले भी हुआ हूँ पर..
… बे-अहसास नहीं !

दिल गया था

दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता

मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखु|

बस थोड़ी दूर है

बस थोड़ी दूर है घर उनका,
कभी होता ना दीदार उनका ।
मेरी यादों में है बसर उनका,
इतफ़ाक या है असर उनका ।
सहर हुई है या है नूर उनका,
गहरी नींद या है सुरुर उनका ।
पूछे क्या नाम है हुज़ूर उनका,
हम पे यूँ सवार है गुरुर उनका ।
हर गिला-शिकवा मंजूर उनका ।