वो अनजान चला है ईश्वर को पाने की खातिर..
बेख़बर को इत्तला कर दो की माँ-बाप घर पर ही है……….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो अनजान चला है ईश्वर को पाने की खातिर..
बेख़बर को इत्तला कर दो की माँ-बाप घर पर ही है……….
चहेरे -चहेरे पर मैं एक , थकान देखता हूँ आजकल ,
जिसको देखो उसको, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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परिंदों को नोचते हुये,आसमान देखता हूँ आजकल ,
कश्तियों से लड़ते हुये , तूफान देखता हूँ आजकल ।।
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सरहद के इस पार , उस पार , जब से तनाव बढ़ा ,
चूड़ी,कँगन सब जेवर, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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बू जिनके लिबास से गई नहीं मज़लुमो के खून की,
उन्ही के हाथो में गीता – कुरान देखता हूँ आजकल ।।
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मुफलिस के चूल्हो की,राख भी भूख से बिलखती है
पिर को चद्दर,पत्थरों में भगवान् देखता हूँ आजकल ।।
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खाकी , खद्दर और ये सियासते इतनी गन्दी हो गई
मंदिर मस्जिद को , लहू – लुहान देखता हूँ आजकल ।।
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ख़ौफ़ कोई छिप के बैठा है , ज़रूर बेटी के दिल में, मैं
आईने में अक्सर एक , हैवान देखता हूँ आजकल ।।
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जवान बेटी के माथे पे ,रोज – रोज शिकन देख कर
फ़िक्र में डूबा हुआ , रोज मकान देखता हूँ आजकल ।।
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अँधे देखने,बहरे सुनने लगे,जो थे गूँगे चिल्लाने लगे
आदालतों में रोज बिकाऊ,ईमान देखता हूँ आजकल ।।
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कारखानो का धुँआ दिलासे दे दे कर पास बुलाता है
मुफलिसी के घर का बच्चा,जवान देखता हूँ आजकल ।।
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कहीं पत्थर तोड़ता है , कही बर्तन धोता है , बचपन,
नन्हे-नन्हे हाथो में,कायदे परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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हौसले देख कर मुझ को अब ,और आजमाने लगी है
ज़िन्दगी के रोज नये ,मैं इम्तेहान देखता हूँ आजकल ।।
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तन्हा था कल तक “पुरव” तमाम रिश्तों की भीड़ में,
सोहरत आते ही घर रोज मेहमान देखता हूँ आजकल ।।
जिंदगी तो अपने ही तरीके से चलती है….
औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं।
सुबहे होती है , शाम होती है
उम्र यू ही तमाम होती है ।
कोई रो कर दिल बहलाता है
और
कोई हँस कर दर्द छुपाता है.
क्या करामात है कुदरत की,
ज़िंदा इंसान पानी में डूब जाता है
और मुर्दा तैर के दिखाता है…
जरा सी बात देर तक रुलाती रही, खुशी में भी आँखे आँसू बहाती रही, कोइ मिल के खो गया तो कोइ खो के मिल गया, जिन्दगी हमको बस ऐसे ही आजमाती रही|
वो चूड़ी वाले को, अपनी कलाई थमा
देती है. . .
जिनकी आज तक हम उंगलियाँ न
छू सके. .
आपकी गर्दन पर लिपटी
आपके बच्चों की बाहों से कीमती,
जेवर आप कभी नहीं पा सकते..!!!
हर शख्स अपने गम में खोया है…..!!!
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और जिसे गम नहीं, वो कब्र में सोया है…….!!
तरस खाओ तो बस इतना बताओ….
“हमदम”
वफ़ा नहीं आती या तुम से की नहीं जाती……..
बुलंदियो को पाने की ख्वाहिश तो बहुत है मगर ,
दूसरों को रौंदने का हुनर कहां से लाऊं….
उसकी मुहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब है,
अपना भी नहीं बनाती और किसी का होने भी नहीं देती….!!
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