तेरे ज़िक्र भर से हो जाती है मुलाक़ात जैसे..
तेरे नाम से भी इस क़दर
इश्क़ है मुझ को..!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तेरे ज़िक्र भर से हो जाती है मुलाक़ात जैसे..
तेरे नाम से भी इस क़दर
इश्क़ है मुझ को..!
ऐसा कोई जिंदगी से वादा तो नहीं था
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं
था
तेरे लिये रातो में चाँदनी उगाई थी
क्यारियों में खुशबू की रोशनी लगाई थी
जाने कहाँ टूटी
है डोर मेरे ख्वाब की
ख्वाब से जागेंगे सोचा तो नहीँ था
शामियाने शामो के रोज ही सजाएं
थे
कितनी उम्मीदों के मेहमा बुलाएं थे
आके दरवाज़े से लोट गए हो ऐसे
यूँ भी कोई आयेगा
सोचा तो नहीं था…..
जरूरतें भी जरूरी हैं जीने के लिये …..लेकिन …
तुझसे जरूरी तो जिंदगी भी नही……..
आज दिल में एक अजीब सा दर्द है मेरे मौला ।
ये तेरी दुनिया है! तो यहाँ इंसानियत क्यों मरी है।
एक उसूल पर गुजारी है जिंदगी मैंनें,
जिसको अपना माना उसे कभी परखा नही..
ये जो खामोश से अल्फ़ाज़ लिखे है ना,
पढ़ना कभी ध्यान से, चीखते कमाल के हैं..
त्यौहार के बहाने ही सही…
रिश्ते घर तो लौट आते है..
जो प्यासे हो तो अपने साथ रक्खो अपने बादल भी
ये दुनिया है विरासत में कुआँ कोई नहीं देगा
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है
उम्र की ढलान में “इश्क़” होना कोई अचरज की बात नही
ं गेंद जब पुरानी हो जाती है तब “रिवर्स स्विंग” लेती है…।