शेर ओ रूमान

शेर ओ रूमान के वो ख़्वाब कहाँ हैं तेरे वो नुक़ूश-ए-गुल-ओ-महताब कहाँ हैं तेरे

ज़िंदगी जिनसे हो ख़फ़ा

ज़िंदगी जिनसे हो ख़फ़ा, उनसे रूठ जाती है मौत भी शायद ….

सुनो यही तो

सुनो यही तो प्यार होता है ना जब कोई जीने लगता हैं किसी और के जिस्म में रूह बनकर

ये जो ख़ामोश से

ये जो ख़ामोश से अल्फ़ाज़ लिखे हैं मैंने, कभी ध्यान से पढ़ना, चीखते कमाल है।

वक्त की सीढ़ियों पे

वक्त की सीढ़ियों पे उम्र तेज चलती है जवां रहोगे कोई शौक पाल कर रक्खो

इश्क़ का खेल

इश्क़ का खेल जवानी के लिए होता है बूढ़े मुँह में मुँहासे नही होते !!

मैंने देखा है

मैंने देखा है मोहब्ब़त का हर मंजर.. मैं मुमताज़ नही .पर शाहजहाँ से वाकिफ हूँ.

किस्से बन जाता है

किस्से बन जाता है, कहानियाँ हो जाता है, इक उम्र के बाद आदमी, आदमी नहीं रहता …

हर आदमी में होते हैं

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिसको भी देखना हो कईं बार देखना।

बड़ा मासूम जज़्बा है

बड़ा मासूम जज़्बा है सदाक़त हो अगर इसमें मुहब्बत को जहाँ भी हो मुहब्बत ढूंढ लेती है

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