ख़ुद गुलाब हो कर तुम गुलाब छूती हो ,
कितनी क़यामतें बरपा करना चाहती हो..??
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख़ुद गुलाब हो कर तुम गुलाब छूती हो ,
कितनी क़यामतें बरपा करना चाहती हो..??
उसे भी खिड़कियाँ खोले
ज़माना बीत गया
मुझे भी शामो-सहर का पता नहीं चलता
होगी मजबूरी कोई वजह मानता हूँ,
मैं जुबां तेरी साँसों की जानता हूँ।।
लहज़ा शिकायत का था मगर,
सारी महफिल समझ गयी मामला मोहब्बत का है !!
आज धुंध बहुत है…….
काश मै टकरा जाऊँ तुमसे..
दिल रोज सजता है, नादान दुल्हन की तरह..!!
गम रोज चले आते हैं, बाराती बनकर..!
बहुत मुश्किल नहीं हैं,
ज़िंदगी की सच्चाई समझना,जिस तराज़ू पर दूसरों को तौलते हैं, उस पर कभी ख़ुद बैठ के देखिये।
कहाँ मिलता है कभी कोई समझने वाला?
जो भी मिलता है समझा के चला जाता है।
दिल तो बहुत जलता है यारों पर यह सोच के खामोस हु
की दिल की हर जलन को पन्ने में उतारू तो कही पन्ना जल न जाए
यूँ पानी से नहीं थमने वाली तेरी हिचकियाँ,
इलाज़ चाहिए तो हमारी मौत की दुआ किया कर…